आप सभी ऑर्केस्ट्रा के नाम से तो परिचित होंगे ही,आप में से बहुतो ने कोई न कोई ऑर्केस्ट्रा सुना ही होगा,वैसे तो आजकल हर छोटे- बड़े फंक्शन में ऑर्केस्ट्रा दिखाई सुने देता हैं,बेटी की शादी हो या,स्कूल में पेरेंट्स डे की मीट,ऑर्केस्ट्रा होना आम बात हैं,कभी स्कूल के वार्षिक उत्सव में ,कभी किसी होटल में आप आसानी से ऑर्केस्ट्रा सुन सकते हैं ,पिछले कुछ समय से लोगो का ऑर्केस्ट्रा की और रुझान बड़ा हैं,इस कारण बड़ी संख्या में अलग अलग नामो से,बड़े बड़े संगीतकारों द्वारा निर्देशित,ऑर्केस्ट्रा के ध्वनी मुद्रण बाज़ार में बिकने लगे हैं। जिसमे से कई बहुत लोकप्रिय हुए हैं,रिलेक्सेशन नाम का आदरणीय पंडित विश्वमोहन भट्ट द्वारा संगीत निर्देशित- संयोजित ध्वनी मुद्रण काफी लोगो ने पसंद किया था।
ऑर्केस्ट्रा के बारे में सबसे पहली बात तो यह कि ऑर्केस्ट्रा का हिन्दी नाम वाद्यवृन्द हैं,आज से कई कई वर्षो पहले महर्षि भरत हुए,जो नाट्य कला और संगीत के महान विद्वान हुए ,उनका ग्रन्थ नाट्य और संगीत सम्बन्धी पहला ग्रन्थ कहलाता हैं ,उनके समय में नाट्य के साथ ऑर्केस्ट्रा अर्थात वाद्यवृन्द का प्रयोग होता था । मुगलकाल में ऑर्केस्ट्रा कि स्थिति कुछ खास अच्छी नही रही ,उस समय कलाकारों ने बंदिश को वाद्यों पर सामूहिक रूप से बजाना आरम्भ किया,एक ही गत या बंदिश सब कलाकार बजाते थे ।
समय बदला,पिछले कुछ दशको में ऑर्केस्ट्रा या वाद्यवृन्द को नया जीवन प्राप्त हुआ,अलग अलग थियेटर व् कम्पनियों व् व्यक्तियों के प्रयत्नों से ऑर्केस्ट्रा को नवीन दिशा मिली ,
स्वर्गीय उस्ताद अल्लाउद्दीन खान साहब का मैहर बेंड काफी उम्दा ऑर्केस्ट्रा कि धुनें बजाता था ,इसमे भारतीय वाद्यों के साथ पाश्चात्य संगीत के वाद्यों का भी उपयोग किया जाने लगा,बाबा अल्लाउद्दीन खान साहब ने स्वयं भी कुछ नए वाद्य बनाकर इस वाद्यवृन्द में शामिल किए। वर्तमान में भी यह वाद्यवृन्द काफी जगह प्रस्तुतिया दे रहा हैं।
सिनेमा ने भारतीय संगीत को बहुत कुछ दिया,वाद्यवृन्द को सिनेमा संगीत में महत्वपूर्ण स्थान मिला,तिमिर बरन का भी भारतीय वाद्यवृन्द में महत्वपूर्ण योगदान रहा,आदरणीय पंडित रविशंकर ने ऑर्केस्ट्रा के लिए अविस्मर्णीय कार्य किया,उन्होंने विभिन्न देशो लिए संगीत रचना की,उनके बनाये ऑर्केस्ट्रा की रचनाऐ पूर्ण रूप शास्त्रीय संगीत पर आधारित थी साथ ही कई रचनाऐ लोक व् पाश्चात्य संगीत पर आधारित भी रही,कहानी, थीम पर आधारित रचनाऐ बनाने का श्रेय उन्ही को जाता हैं,इस तरह परंपरागत ऑर्केस्ट्रा पाशचात्य, लोक व् शास्त्रीय संगीत सज्ज होकर व् इन सबकी समीलित धुनों में रचकर,कल्पना के विविध रंगों से युक्त होकर कुछ एक्स्ट्रा बना . आज भी कई नए युवक युवतिया इस क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं।
Wednesday, August 20, 2008
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2 comments:
बढ़िया आलेख..आभार.
ये आलेख भी बढिया रहा राधिका जी - लिखती रहीये ..
नेट पर ये सामग्री सँग्रहणीय हो जायेगीँ !
- लावण्या
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