लीजिये जनाब,अब जमाना आ गया हैं फ्यूजन म्यूजिक का,जिसे देखो फ्यूजन कर रहा हैं,फ्यूजन सुन रहा हैं,बडे पिता की संतान हो,या नामचीन कलाकार,संघर्षरत कलाकार हो या ,नौसिखा गायक वादक,सब फ्यूजन की धुन में लगे हैं,आलम यह हैं की चारो दिशाओ में फ्यूजन हो रहा हैं और हम कन्फ्यूज़ हो रहे हैं.
आख़िर हैं क्या बला यह फ्यूजन ???आईये आज जानते हैं फ्यूजन के बारे में ।
दो सुंदर संगीत धाराओं का सुंदर सम्मिश्रण होता हैं फ्यूजन,जैसे दो या तीन नदिया मिल कर त्रिवेणी संगम बनती हैं और वह स्थान तीर्थ बन जाता हैं वैसे ही दो-तीन संगीत शैलियों के गुण मिलाकर,उनकी अच्छी बातो का समावेश किसी एक रचना में कर उसका अत्यन्त ही मधुर,प्रभावी प्रस्तुतिकरण होता हैं फ्यूजन ।
फ्यूजन में स्वर माधुर्य होता हैं,कल्पनाशीलता होती हैं,लयात्मकता होती हैं,और वह बात होती हैं जो श्रोताओ के ह्रदय को छु जाए,जो संगीत की अधिक समझ न रखने वालो को भी अपनी भावपूर्ण स्वर लहरियों में भिगो दे,साथ संगीत के जानकारों का ह्रदय भी अपनी कलात्मकता और गुनात्म्क्ता के बलबूते लुभा ले।
पर आजकल देख रही हूँ ,कि फ्यूजन के नाम पर भोली भोली सुनकार जनता को न जाने क्या-क्या परोसा जा रहा हैं,कई बार तो लगता हैं कही की इट कही का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा , तो कभी २ मिनिट सुनने के बाद ही यह म्यूजिक बंद कर देने का मन होता हैं,
न प्रभावशील रचना होती हैं,न उस रचना को कल्पना के हिलोरो में झुलाया जाता हैं ,नही बोलो को सुंदरता से सजाया जाता हैं,न ताल के छन्दों से खेला जाता हैं,होती हैं तो तीव्र लय के साथ भागम भाग।
सच कहा जाए तो फ्यूजन दो संस्कृतियों मिलन हैं ,दो परम्पराओ का मेल हैं,मुझे फ्यूजन से कोई आपत्ति नही,आपत्ति फ्यूजन के कन्फ्यूजन होने से हैं.हमारे कई श्रेष्ठ शास्त्रीय संगीत्घ्यो ने सुंदर फ्यूजन किया हैं ,उसे जरुर सुने, समझे,ताकि आप फ्यूजन के इस दौर में कन्फ्यूज़ न हो जाए।
Tuesday, August 19, 2008
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7 comments:
अच्छा लेख लिखा आपने.
कुछ उदहारण सहित मेरा मतलब पोडकास्ट के साथ समझाती तो और भी अच्छा लगता.
फ़्यूजन के द्वारा अब संगीतकारो को दूसरॊ का संगीत चोरी करने में आसानी होगी। नये संगीत के नाम पर लोगो को कन्फ़ूज करेगें और चोरी का इल्जाम भी नही लगेगा ।
सही कहा जी, फ्युजन ऐसा हो जो नया स्वाद पैदा करे.
fusion and confusion...:)
very True Radhika ji -
I agree 100 %
- लावण्या
सहमत!
कई बार इस तरह के क्न्फ्यूजन सुनकर मेरा भी मन होता है अपने बाल नोंच लूं या फिर रेडियो टीवी को पटक दूं, और ऐसा करने में नुकसान अपना ही होना है सो रेडियो या टीवी के चैनल ही बदल देता हूँ... अरे पर यह क्या यहाँ तो रिमिक्स गाने चल रहे हैं।
अब मैं कहां जाऊं?
बढ़िया आलेख है राधिका । लिखा भी मज़ेदार अंदाज़ में।
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