Wednesday, August 20, 2008

साम से उपजा संगीत


संसार में ऐसा कोई प्राणी नही हैं जिसे संगीत से प्रेम हो,जिसे सुरीले गीतों को सुनना पसंद हो,सात स्वर, जिसे स्वर्गीय आनंद में डुबो देते हो ,कह्ते हैं मुग़ल शासक औरंगजेब संगीत से घृणा करता था,संगीतकारों को दंड देता था,कहानी यहाँ तक हैं कि, उस समय के संगीतकारों ने एक बार एक अर्थी लेकर जुलुस निकाला,जब राजअधिकारियो ने उनसे पूछा कि यह अर्थी किसकी हैं और इसे लेकर पुरे शहर में जुलुस निकलने से क्या अभिप्राय हैं?तो उन संगीतकारों ने जवाब दिया,"यह अर्थी संगीत की हैं,और हम इसलिए जुलुस निकाल रहे हैं ताकि औरंगजेब को यह पता चल सके कि उसके राज्य में संगीत कि क्या दशा हुई हैंपर सच यह हैं कि औरंगजेब को भी संगीत प्रिय था और वह संगीत सुना करता था

जिस संगीत कि माया ने किसी को मोहने से नही छोड़ा वह संगीत उपजा कहा से और कैसे यह कौन नही जानना चाहेगा?

कहते हैं कि सर्व सृजक ब्रह्म देव ने संगीत कला का भी सृजन कियाउनसे यह कला माता वीणापाणी को प्राप्त हुई ,माता शारदा ने यह कला नारद मुनि को दी ,कुछ मानते हैं कि, शिवजी ने यह कला नारद को दीशिवजी ने माता पारवती की शयन मुद्रा को देखकर रुद्रवीणा की रचना की,उनके मुख से हिंडोल,मेघ,दीपक,व् श्री राग उत्पन्न हुए ,व् माता पारवती के मुख से कौशिक राग उत्प्प्न हुआ.
फारसी की एक कथा के अनुसार एक बार हजरत मूसा पहाडो पर घूम रहे थे,तो उन्हें एक पत्थर दिखाई दिया। उन्होंने उस त्थर पर अपने असा से वार किया,तो उस पत्थर में सात छिद्र हो गए,सात छिद्रों से सात धारा निकली,इन्ही जलाधाराओ की आवाज से हज़रत मूसा ने सात स्वरों कि रचना की।

कुछ विद्वानों का कहना हैं की संगीत की उत्पत्ति पशुपक्षियों की आवाजों से हुई,मोर से सा,चातक से रे ,बकरे से ,कौवे से ,कोयल से प,मेंढक से ,और हाथी से नी स्वर उत्पन्न हुए

पाश्चात्य विद्वान् फ्रायड के मतानुसार संगीत की उत्पप्ति सहज मनोविघ्यान के आधार पर हुईअर्थात यह विद्या अन्य बातो की तरह,सहज रूप से मानवको आई

कुछ के मतानुसार संगीत की उत्पत्ति ओमकार से हुई

हम सभी ने चारो वेदों का नाम तो सुना ही हैं ,चारो वेदों में से सामवेद,गानवेद हैं , सामवेद में कई ऋचा हैंउनका सस्वर गान कैसे किया जाए? यह दिया हुआ हैं ,सामगान की कुछ ऋचा तीन- चार स्वरों मेंहैं,परन्तु इसमे ही सात स्वरों के साथ ऋचाओ का गान भी दिया हुआ हैं, अत:साम से ही संगीत की उत्पत्ति हुई यह कहने मैं कोई हर्ज़ नही हैं

ऑर्केस्ट्रा यानि...कुछ एक्स्ट्रा

आप सभी ऑर्केस्ट्रा के नाम से तो परिचित होंगे ही,आप में से बहुतो ने कोई कोई ऑर्केस्ट्रा सुना ही होगा,वैसे तो आजकल हर छोटे- बड़े फंक्शन में ऑर्केस्ट्रा दिखाई सुने देता हैं,बेटी की शादी हो या,स्कूल में पेरेंट्स डे की मीट,ऑर्केस्ट्रा होना आम बात हैं,कभी स्कूल के वार्षिक उत्सव में ,कभी किसी होटल में आप आसानी से ऑर्केस्ट्रा सुन सकते हैं ,पिछले कुछ समय से लोगो का ऑर्केस्ट्रा की और रुझान बड़ा हैं,इस कारण बड़ी संख्या में अलग अलग नामो से,बड़े बड़े संगीतकारों द्वारा निर्देशित,ऑर्केस्ट्रा के ध्वनी मुद्रण बाज़ार में बिकने लगे हैंजिसमे से कई बहुत लोकप्रिय हुए हैं,रिलेक्सेशन नाम का आदरणीय पंडित विश्वमोहन भट्ट द्वारा संगीत निर्देशित- संयोजित ध्वनी मुद्रण काफी लोगो ने पसंद किया था
ऑर्केस्ट्रा के बारे में सबसे पहली बात तो यह कि ऑर्केस्ट्रा का हिन्दी नाम वाद्यवृन्द हैं,आज से कई कई वर्षो पहले महर्षि भरत हुए,जो नाट्य कला और संगीत के महान विद्वान हुए ,उनका ग्रन्थ नाट्य और संगीत सम्बन्धी पहला ग्रन्थ कहलाता हैं ,उनके समय में नाट्य के साथ ऑर्केस्ट्रा अर्थात वाद्यवृन्द का प्रयोग होता थामुगलकाल में ऑर्केस्ट्रा कि स्थिति कुछ खास अच्छी नही रही ,उस समय कलाकारों ने बंदिश को वाद्यों पर सामूहिक रूप से बजाना आरम्भ किया,एक ही गत या बंदिश सब कलाकार बजाते थे

समय बदला,पिछले कुछ दशको में ऑर्केस्ट्रा या वाद्यवृन्द को नया जीवन प्राप्त हुआ,अलग अलग थियेटर व् कम्पनियों व् व्यक्तियों के प्रयत्नों से ऑर्केस्ट्रा को नवीन दिशा मिली ,
स्वर्गीय उस्ताद अल्लाउद्दीन खान साहब का मैह बेंड काफी उम्दा ऑर्केस्ट्रा कि धुनें बजाता था ,इसमे भारतीय वाद्यों के साथ पाश्चात्य संगीत के वाद्यों का भी उपयोग किया जाने लगा,बाबा अल्लाउद्दीन खान साहब ने स्वयं भी कुछ नए वाद्य बनाकर इस वाद्यवृन्द में शामिल किएवर्तमान में भी यह वाद्यवृन्द काफी जगह प्रस्तुतिया दे रहा हैं
सिनेमा ने भारतीय संगीत को बहुत कुछ दिया,वाद्यवृन्द को सिनेमा संगीत में महत्वपूर्ण स्थान मिला,तिमिर बरन का भी भारतीय वाद्यवृन्द में महत्वपूर्ण योगदान रहा,आदरणीय पंडित रविशंकर ने ऑर्केस्ट्रा के लिए अविस्मर्णीय कार्य किया,उन्होंने विभिन्न देशो लिए संगीत रचना की,उनके बनाये ऑर्केस्ट्रा की रचना पूर्ण रूप शास्त्रीय संगीत पर आधारित थी साथ ही कई रचना लोक व् पाश्चात्य संगीत पर आधारित भी रही,कहानी, थीम पर आधारित रचना बनाने का श्रेय उन्ही को जाता हैं,इस तरह परंपरागत ऑर्केस्ट्रा पाशचात्य, लोक व् शास्त्रीय संगीत सज्ज होकर व् इन सबकी समीलित धुनों में रचकर,कल्पना के विविध रंगों से युक्त होकर कुछ एक्स्ट्रा बना . आज भी कई नए युवक युवतिया इस क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं