Wednesday, August 13, 2008

बहुजन सुखाय


बहुजन हिताय बहुजन सुखाय यह पंक्ति सुनकर सर्वप्रथम मन मस्तिष्क में जो नाम आता हैं वह आकाशवाणी रेडियो से मैं बचपन से जुड़ी रही इस कारण उसके विषय मैं जानने सोचने को मन बार बार मजबूर हो जाता हैं, स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व कलाकारों,संगीतकारों को राजाश्रय प्राप्त था,संगीत राजाश्र्यो में खूब फला फुला,परन्तु साधारण जनता तक इसका पहुचना कठिन था,उस समय ऐसे संगीत कार्क्रम भी कम ही होते थे,जिनको सुनने साधारण जनता आसानी से पहुच सके
सन १९२६ में इंडियन ब्रोडकास्टिंग सर्विस द्वारा पहली नियमित प्रसारण सेवा आरम्भ की गई , भारत में पहला रेडियो स्टेशन सन १९२७ में मुंबई में बना सन मार्च १९३० से यह सेवा भारत सरकार ने अपने हाथो में ले ली ,सन १९३६ में आल इंडिया रेडियो का गठन हुआ,बाद में यही आकाशवाणी कहलाया
सन १९४७ से सन १९७५ तक का काल आकाशवाणी का स्वर्णकाल था ,स्वतंत्रता के बाद डॉ.बाल कृष्ण केसकर मंत्री हुए ,उनके काम सँभालते ही रेडियो के स्वर्णिम दिन शुरू हो गए,कई महान गुणी कलाकार रेडियो से जुड़े,विभिन्न स्थानों पर हुए कार्यक्रमों का ध्वनी मुद्रण श्रोताओ को सुनाया जाने लगा,जिससे संगीत सर्वजन सुलभ हुआ आकशवाणी संगीत सम्मलेन जैसा कार्यक्रम शास्त्रीय संगीत श्रोताओ के लिए संजीवनी सिद्ध हुआ,सुगम संगीत के जो भी कार्यक्रम होते थे वे अव्वल दर्जे के होते थे,फ़िल्म संगीत के कार्यक्रमों का प्रसारण भी अनवरत जारी रहा इस समय आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों का स्तर बहुत ऊँचा था सुधि संगीत साधको का गायन वादन,संगीत विषयक परिचर्चाये,शास्त्रीय संगीत के प्रसार के लिए उत्तम साबित हुई,परन्तु टीवी के आगमन से आकाशवाणी को बहुत नुकसान पंहुचा जहा एक और इसके श्रोता कम हुए ,वही रेडियो पर प्रसारित कार्यक्रमों के स्तर में भी बहुत गिरावट आई,आज आकाशवाणी के प्रादेशिक अन्य केन्द्र मिलाकर कुल २१५ केन्द्र हैं,आकशवाणी देश भर की सबसे बड़ी प्रसारण सेवा हैं,किंतु इस सेवा की जो दुर्दशा हो रही हैं वह भी उतनी ही बड़ी हैं,शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों का स्तर तो बहुत निचे गिरा हैं,कोई भी राग कभी भी प्रसारित करना,राग की शुद्धता पर ध्यान देना,उत्कृष्ट संगतकार कलाकरों को उपलब्ध होना आदि कारण ऐसे हैं जिन पर बहुत बारीकी से धयान दिया जाना आवश्यक हैं,आकाशवाणी संगीत सम्मलेन महज खानापूर्ति बन गया हैं,विविध भारती पर शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों का प्रसारण के बराबर हैं,दिन में एक बार १०-१५ मिनिट किसी कलाकार का गायन वादन प्रसारित हो जाता हैं,तो हो जाता हैं,कभी कभी कुछ संगीत श्रंखलाये भी प्रसारित हो जाती हैं,कितने ही सालो से रेडियो पर कलाकरों की नियुक्तिया हुई ही नही हैं,पुराने कलाकारों के रीटायरमेंट से या मृत्यु से जाने कितनी ही वाद्यवादकों,गायकों से स्थान खाली पड़े हैं,परन्तु इन पर नए कलाकारों की नियुक्तिया अभी तक नही हुई हैं,अब तो आलम यह हैं की संगीत रूपक बनाने के लिए भी पुरी तरह से धन नही मिल रहा,जो स्टाफ आर्टिस्ट अब भी आकशवाणी में कार्यरत हैं हैं उनमे से कई अधिक जवाब्दारियो से थक गए हैं,और कुछ ऐसे हैं,जिन्हें सिर्फ़ अपनी ड्यूटी भर करनी हैं.इस हालत में आकाशवाणी का भविष्य धुंध भरा अनिश्चित सा नज़र आता हैं,शास्त्रीय संगीत के लिए रेडियो एकमात्र ऐसा माध्यम था जो वाकई बहु कलाकार हिताय,संगीत हिताय,श्रोता सुखाय था,अब वही ब्रह्मकमल सूख रहा हैं मुरझा रहा हैं,प्रसारण के इस युग में सुंदर पवित्र कमल रूपी इस प्रसारण माध्यम का स्थान जाने कितने गेंदे के फुल और गाज़रघास रूपी ऍफ़ एम् चेनल लेने का प्रयास कर रहे हैं,वह भी सस्ती पसंद बेचकर,दिन भर वही हंगामा गाने,और जाने कितनी बार उन्ही उन्ही गानों का अलग अलग कार्यक्रमों में प्रसारण जरुरत हैं इस मुद्दे को संसद में उठाने की,इस विषय में जाग्रति पैदा कर इस सुंदर,गौरवपूर्ण,एतिहासिक उपहार को बचाने की,सहेजने की सँभालने की आज आकशवाणी को ८१ साल हो चुके हैं,और हम इसे गवा नही सकते,कही ऐसा हो,अब पछतावे क्या होत जब चिडिया चुग गई खेत


आकाशवाणी का लोगो इमेज http://indembkwt.org/से साभार प्राप्त

7 comments:

admin said...

आकाशवाणी के बारे में पढकर यह महसूस हुआ कि अभी भी यह जिंदा है, आपके, हमारे और तमाम लोगों के दिलों में।

कुश said...

धन्यवाद इस बेहतरीन पोस्ट के लिए.. आकसवानी के बारे में काफ़ी कुछ नया जानकार खुशी हुई.. बधाई

प्रवीण पराशर said...

राधिका जी आपका ब्लॉग देखकर बड़ी खुशी हुई , और यह जानकर की आप हमारे ग्वालियर की है और खुशी बढ़ गई , आपने जब तानसेन संगीत समारोह की बात की, मुझे कृपया अपने स्टेज के अनुभवों के बारे मैं भी लिखे |

Udan Tashtari said...

बेहतरीन पोस्ट.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

राधिका जी,
काश आपकी दी हुई उपमा का "ब्रह्मकमल " दुबारा विकसित हो जाये !
आप जैसे युवा , गुणी कलाकारोँ को सँसद मेँ आवाज़ पहुँचानी चाहीये ~~
राधिका जी ,
केसकर जी का आग्रह था कि, आकाशवाणी पर सर्व प्रथम गीत साहित्यिक स्तर का हो और स्व. अनिलदा ( बिस्वास ) के सँगीत मेँ गुँथा, मन्ना बाबु का गाया और पुज्य पापाजी ( पँ. नरेन्द्र शर्मा ) का लिखा गीत ,
" नाच रे मयूरा " बना और प्रसारित किया गया ~~
- क्या आप इस गीत को " विचित्र वीणा "
पे बजा सकेँगीँ ?
उसे रीकोर्ड करके, आकाशवाणी द्वारा प्रसारित करियेगा -
मुझे बहुत खुशी होगी.
ये लिन्क देखियेगा
(गीत के शब्दोँ के लिये )- http://www.lavanyashah.com/2008/08/blog-post_04.html
- लावण्या

PREETI BARTHWAL said...

आकाशवाणी के बारे में बहुत दिनों बाद पढने को मिला और जानकारी भी मिली अच्छा लगा। धन्यवाद राधिका जी

Anonymous said...

आकाशवाणी हमेशा से सुनने वालो के लिए नंबर 01 था और रहेगा.
मैं पिछले 4 साल से यहाँ काम कर रही हू बहुत कुछ सिखने को मिलता है साथ ही सिखाने को भी अगर आज भी सही मायनो में सच्चा रेडियो साथी है तोह वोह हमारा अपना आकाशवाणी है और रहेगा.
:)