Friday, August 15, 2008

मैं हर जनम भारतीय नारी कहला सकू


स्वतंत्रता दिवस पर सर्वप्रथम माँ भारती को मेरा शत शत प्रणाम ।

मैं
कोई राजनेता नही जो किसी राजोत्सव में माता को वन्दन कर सकू,न मैं कोई शिक्षिका,विद्यार्थिनी हु ,जो विश्विद्यालय के किसी उत्सव में भाग लेकर भगवती को नमन कर सकू, न मैं कोई कर्मचारी हु ,जो त्रिबार झंडा वंदन कर सकू । मैं तो बस एक अदनी सी संगीतकार हु,जिसके पास उसके सात स्वरों के आलवा माँ को देने के लिए दूजा कुछ नही हैं। अत:उन्ही सुरों को मैं माँ को अर्पित करती हु।

जिस
प्रकार सा जनक हैं सारे सुरों का ,साम गान जनक हैं शास्त्रीय संगीत का जिसके जैसा संगीत सारे संसार में कही नही हैं .साम वेद और चारो वेद अलौकिक और दुर्लभ हैं.
संस्कृत भी वह भाषा हैं जो सारी भाषाओ की जननी हैं .


दूसरा स्वर हैं ऋषभ,अर्थात रे,राग व् रस से परिपूर्ण कलाओ से समृध्ध हैं माँ तेरा आँचल,कही नही वह ६४ कलाए माँ तेरे आँगन में सुंदर बालको सी रात - दिवस खेल रही हैं ,अपनी सुंदर उपस्तिथि से तेरे रूप वैभव को द्विगुणित कर रही हैं.


तीसरा स्वर गांधार,प्राचीनकाल में एक राज्य था गांधार वहा की राजकुमारी गांधारी और ध्रितराष्ट्र की पत्नी महान सती थी , जाने कितनी सती और संन्नारिया तेरी पुत्री हैं माँ,रूप,गुण , कला, संस्कार से सुशोभित तेरी ये पुत्रिया अजरामर हैं ,

ग से ही हैं गंगा ,गंगा जो हमारी पवित्र नदी हैं,शिव की जटा से निकल युगों से भारतीय जनमानस को पोषित, पवित्र कर रही हैं,न सिर्फ़ गंगा! कावेरी ,यमुना, कृष्णा, गोदा जैसी कितनी ही छोटी बड़ी नदिया तेरी हरी भरी साडी को अपने हीरे की तरह पारदर्शी जल रूपी मोतियों से सजा रही हैं ।
गीता व अन्य दर्शन तेरी ही पूंजी हैं .

चौथा स्वर मध्यम,म से मानव,माँ सृष्टिकर्ता ने तेरी गोद में अरबो मानव -मानवी सुपुत्र ,पुत्रिया डाले हैं ,तेरी यह मानव सम्पंदा अतुलनीय हैं .
म से ही मन्दिर मस्जिद ,माँ तेरे बालक उस सृजनकर्ता में पुरा विश्वास रखते है और न जाने कितने मंदिरों मस्जिदों में उसकी अनेकानेक रूपों में आराधना करते हैं,यह उनके पावित्र्य का सूचक तो हैं ही माँ,साथ उनके बनाये मन्दिर मस्जिद वास्तुकला की दृष्टि से भी अद्वितीय अभूतपूर्व हैं ।

पांचवा स्वर पंचम अर्थात प,प से पर्वत ,विन्ध्याचल सतपुडा की पर्वत श्रेणिया तो विश्व प्रसिध्ध हैं ही,साथ ही हिमालय जो वन्याऔश्धि से परिपूर्ण व अन्य पर्वत भी तेरा सौन्दर्य बढ़ा रहे हैं .

छठा
स्वर धैवत ध , ध से धर्मं माँ कितने ही धर्मं तेरी श्वासों से जन्म लिए हैं,हम सभी अलग अलग धर्मो में विश्वास रखते हैं उनका पालन करते हैं फ़िर भी हम धर्मनिरपेक्ष हैं कयोकी हम सभी धर्मो का सन्मान करते हैं उन्हें सामान आदर देते हैं .

सातवा स्वर निषाद अर्थात नि ,नि से निसर्ग माँ तेरी नैसर्गिक सुन्दरता अप्रतिम हैं,निसर्ग ने तुझे प्रचुर हीरे,मोती,मनिक्यो से सजाया हैं,निसर्ग ने तुझे न जाने कितने वन्य पशु पक्षियों का वरदान दिया हैं,निसर्ग ने तेरे अन्तर में न जाने कितने खजाने भर दिए हैं .माँ तू श्रेष्ट हैं ,पञ्च महाभूतो ने तुझ पर अपना विपुल प्रेम बरसाया हैं

माँ.
यह कहते हुए दुःख होता हैं की तेरे साथ हमने बहुत दुर्व्ह्य्वार किया हैं माँ, फ़िर भी हर भारतीय का मन आज भी निर्मल हैं तेरे लिए अपने बांधवो के लिए उसके मन में प्रेम हैं ,कुछ करने की इच्छा हैं,विश्वास हैं,जोश हैं और जब तक यह कायम हैं तुझे कोई नही हरा सकता माँ,मुझे आशीर्वाद दे की मैं हर जनम तेरी गोद में लू,हर जनम तेरे आँचल में स्वयं को छुपा सकू,तेरी अंगुली पकड़ के में बहुत आगे जा सकू, तेरे नाम को रोशन कर सकू .मैं हर जनम में भारतीय नारी कहला सकू माँ, इतना ही वर दे............



भारत माँ की तस्वीर http://im.sify.कॉम से साभार

7 comments:

राज भाटिय़ा said...

आप के लेख का शीर्षक ही बहुत सुन्दर हे,आप के इस शीर्षक से भारतीया नारी की महानता झलकती हे,
**मैं हर जनम भारतीय नारी कहला सकू **
बहुत बहुत धन्यवाद

सुनीता शानू said...

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
जय-हिन्द!

दिनेशराय द्विवेदी said...

सारेगामापाधानिसा इन सात स्वरों में समाई सारीध्वनियाँ,
जैसे जन भारत के रहते भारत में

आजाद है भारत,
आजादी के पर्व की शुभकामनाएँ।
पर आजाद नहीं
जन भारत के,
फिर से छेड़ें, संग्राम एक
जन-जन की आजादी लाएँ।

Udan Tashtari said...

स्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.

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अबरार अहमद said...

aajadi diwas ki badhai.