संगीत से चाहे कितना ही अल्प परिचय क्यों न हो!शास्त्रीय संगीत की राग रचना,आलाप,सुरताल का ग्यान हो,न हो,लोक संगीत की सरसता,प्रवाहशीलता में मन बहे न बहे,फ़िल्म संगीतकी सुरीली झंकारों पर पाव थिरके न थिरके,पर गज़ल वह विधा हैं कि हर किसी को पसंदआती हैं,हर किसी को अपनी सी लगती हैं,हर कोई सुनना पसंद करता हैं,गुनगुनाना पसंदकरता हैं,सच कहे तो कभी यह अपने ही दिल कि बात सुनाती सी,कहती सी लगती हैं इसलिएआज जब कई अन्य सांगीतिक  विधाये अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं,तब गज़लहर मन छा गई हैं,हर दिल पर राज कर रही हैं। 
   गज़ल के शेर अत्यन्त भावपूर्ण,अर्थपूर्ण होते हैं,साथ ही चमत्कारिक भी। कल्पनाओ कासमुन्दर ही मानो गज़ल में समाया होता हैं.शास्त्रीय व् सुगम संगीत इन दोनों के सुंदर तत्वोंका मिश्रण गज़ल में होने से वह लोकप्रिय हुई हैं।अब यही गज़ल देखे......
         "दुनिया जिसे कहते हैं,जादू का खिलौना हैं,मिल जाए तो मिट्टी हैं,खो जाए तो सोनाहैं"। 
 कितनी अर्थपूर्ण,रंजक,सुंदर लिखी गई हैं,और जगजीत सिह जी और चित्रा जी ने इसे गया  भी बखूबी  हैं । 
  गज़ल गायन की तीन शैलिया हैं -बनारसी,दिल्ली,व् लखनवी शैली।
 बनारसी गज़ल प्रौढ़ गज़ल कहलाती हैं,तो दिल्ली की गज़ल अधिक कल्पना युक्त औरविस्तार पूर्ण होती हैं ,लखनवी गज़ल के तो क्या कहने!पुरबी अंग की इस गज़ल में बारीक़-बारीक़ हरकतों और मुर्कियो का बाहुल्य होता हैं जिससे गज़ल गायन और सुंदर हो जाता हैं।
    आज से लगभग  ७० -८० वर्ष पूर्व अफजल हुसैन नगीना इन्होने गज़ल गायन प्रारम्भकिया,उस्ताद बरकत अली खान साहब ने भी शास्त्रीय गायन  के साथ  गज़ल गायन प्रारम्भकिया , आदरणीय बेगम अख्तर साहिबा ने गज़ल गायन को लोकप्रिय करने में बहुत बड़ायोगदान दिया ,उनके बाद मलिका पुखराज का नाम भी गज़ल गयिकाओ में लिया जाताहैं,गज़ल गायकी को नए रूप में श्री कुंदनलाल सहगल ने पेश किया,उस्ताद तलत महमूद केनाम से शायद ही कोई अपरिचित हैं ,उस्ताद मेहँदी हसन ,जगजीत सिह जी ने अच्छी अच्छीस्वर संयोजना  कर,सुंदर गजलो को अभूतपूर्व ढंग से प्रस्तुत किया। 
    उस्ताद गुलाम हुसैन ने अपनी गजलो में शास्त्रीय संगीत कि सरगमो का समावेश कर एकनए ही अंदाज़ में गज़ल गाई .मिर्जा ग़ालिब साहब कि लिखी गजले तो समुद्र में मिलने वालेसच्चे मोतियों जैसी सुंदर,कलात्मक हैं ,उनकी लिखी  "हजारो  ख्वाहिशे इसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमान फ़िर भी कम निकले" ।  न जाने कितने लोगो कि पसंदिता गज़ल हैं गज़ल कि लोकप्रियता का अंदाजाहम इस बात से ही लगा सकते हैं कि आज मराठी,हिन्दी,सिन्धी,गुजराती,अंग्रेजी आदिभाषाओ में भी गज़ल का लेखन हो रहा हैं ,
   आदरणीय  जगजीत सिह जी  ने गाई गज़ल "वो  कौन  है , दुनिया   में  जिसे , गम  नहीं  होता
    किस  घर  में  खुशी  होती  है , मातम  नहीं  होता"कितनी सहजता से जीवन कि व्याख्या कर जाती हैं।
 सच हैं गज़ल अपने आप में पूर्ण होती हैं,तभी तो ये बात भी गज़ल में ही कही जा सकती हैं-
   लब  पे  आती  हैं  दुआ  बनके  तमन्ना  मेरी
       ज़िन्दगी  शम्मा  कि  सूरत  हो  खुदा  या  मेरी
        हो  मेरे  दम  से  यूँ  ही  मेरे  वतन  कि  जीनत
       जिस  तरह  फूल  से  होती  हैं  चमन  कि  जीनत
         ज़िन्दगी  हो  मेरी  परवाने  कि  सूरत  या  रब
       इल्म  कि  शम्मा  से  हो  मुझको  मोहब्बत  या  रब
        हो  मेरा  काम  गरीबों कि   हिमायत  करना
       दर्द  मंदों  से  ज़ईफों  से  मोहब्बत  करना
          मेरे  अल्लाह  बुराई  से   बचाना   मुझको
       नेक  जो  राह  हो  उस  राह   पे  चलाना   मुझको 
Monday, August 18, 2008
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6 comments:
अच्छी जानकारी और खुबसूरत गजल के लिए बधाई
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने इस विधा के बारे में
बहुत रोचक जानकरी.
आप साहित्य व सँगीत की अलग अलग विधाओँ पर लिखियेगा
हमेँ पढकर प्रसन्नता होगी
ये आलेख भी बहुत अच्छा लगा
राधिका जी ~~
- लावण्या
राधिका जी बहुत खूब लिखा है आपने, संगीत के क्षेत्र में ही एक कोशिश है हिंद युग्म की भी आवाज़ (podcast.hindyugm.com ) कभी देखियेगा, खुशी होगी अगर आप भी इस महाप्रयास से जुड़ पायें
राधिका जी.
पहली बार ही आया हूँ आपके चिट्ठे पर.बहुत अच्छा लगा. बड़ी रचनात्मक और सारगर्भित जानकारी जुटाई है आपने.ग़ज़ल पर ये आलेख सुन्दर बन पड़ा है. ग़ज़ल दुनिया की कविता का सिरमौर है.आपको जानकर अच्छा लगेगा कि अब मालवी में भी ग़ज़ल कही जा रही है.(निमाड़ी में तो शानदार काम हो रहा है)मेरे पूज्य पिताश्री नरहरि पटेल ने ख़ासा काम किया है इस इलाक़े में. आपके ब्लॉग के ज़रिये सृष्टि और सुरीली हो सकेगी.आप तो ख़ैर परफ़ॉर्मिंग आर्टिस्ट हैं तो आपसे बहुत अपेक्षा रहेगी..कभी हो सके तो कैसे सुना जाए शास्त्रीय संगीत इस विषय पर ज़रूर लिखियेगा..इससे शास्त्रीय संगीत के प्रति जनरूचि बढ़ेगी.
अजित भाई ने आपक वीणा वादन भी सुनवाया था...मधुरतम था.
अपनी बात को ग़ज़ल पर ही ख़त्म करता हूँ..
दो मिसरों में पूरा नॉवेल साबित हो जाए वह ग़ज़ल .....डॉ.बशीर बद्र.
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