Saturday, August 23, 2008

बंसी की स्वर यात्रा


बंसीधर कृष्ण कहनैया। भगवान श्रीकृष्ण को इस नाम से पुकारा जाता हैं,जैसे बंसी और कृष्ण एक दुसरे के पर्याय हो ।
इस बंसी के जन्म के संबंध में महाकवि कालिदास ने कुमार सम्भव में कल्पना की हैं कि , भौरों द्वारा छिद्रित वंश - नलिका में वायु के प्रवेश से उत्पन्न मधुर ध्वनी को सुनकर किन्नरों ने उसे वाद्य के रूप में प्रचलित किया । यह वाद्य बहुत पुराना हैं,भारत के नाट्य शास्त्र में भी वंशी का वर्णन हैं , महाभारत ,श्रीमत्भागवत में भी वंशी या बांसुरी का वर्णन हैं ,सूरदास ने लिखा हैं ,
"मेरे स्वव्रे जब मुरली अधर धरी
सुनी थके देव विमान । सुर वधु चित्र समान ।
गढ़ नक्षत्र तजत ने रास । यहीं बंशे ध्वनी पास ।
चराचर गति गई विपरीत । सुनी वेणु कल्पित गीत ।
झरना झरत पाषाण । गंधर्व मोहे कल गान । "

आगे पद और भी लंबा हैं ,कितना सुंदर उनके बंसी वादन का वर्णन हैं ,भगवान श्रीकृष्ण बांसुरी के प्रथम घ्यात वादक और श्रेष्ठ संगीत्घ्य के रूप में जाने जाते हैं ।

उनके बाद कई हज़ार वर्षो तक बांसुरी को वह प्रेम नही मिला ,सन १९११ में स्वर्गीय पन्नालाल घोष का जन्म हुआ,उन्होंने बांसुरी पर शास्त्रीय संगीत का वादन करके उसे पुनः:प्रतिष्ठापित किया , इसके पूर्व बांसुरी का प्रयोग सिर्फ़ चित्रपट संगीत और लोक संगीत में होता था । उनके बाद पंडित रघुनाथ सेठ ,पंडित विजय राघव राव ,पंडित भोलानाथ मिश्र ,का नाम श्रेष्ठ बांसुरी वादकों में आता हैं

पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के नाम से कौन अपरिचित हैं,उनके नाम के अनुसार ही उन्हें हरी से ही बांसुरी वादन का मानो प्रसाद मिला ,उन्होंने बांसुरी की हर फूक में स्वर्गीय स्वर भर दिया,उनके ही कारण बांसुरी वादन आज जनसामान्य में अत्यन्त लोक प्रिय हैं ।

आज अन्य कई युवा कलाकार सुंदर बांसुरी वादन कर रहे हैं ।










कृष्ण फोटो -http://image03.webshots.com/से साभार

5 comments:

art said...

bahut hi sundar lekh....kanhaayi ke chitra ne mugdha kar diya

Anonymous said...

bansi suna diya hota

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

राधिकाजी सूरदासजी का दोहा पढकर अति प्रसन्नता हुई :)
शुक्रिया ,
स्व. पन्ना बाबू स्व. अनिल बिस्वास की बहन पारुल घोष के पति थे और जहाँ मैँ पली बडी हुई उसी १९ वेँ रास्ते खार, बम्बई मेँ हमारी गली के अँत मेँ जो घर था वहीँ रहते थे पन्ना बाबू ने शायद उनकी बँसी मेँ ७ छिद्र किये थे - और आज हरिप्रसाद जी भी वहीँ पडौसी हैँ और हर जन्माष्टमी को अखँड बाँसुरी वादन २४ घँटोँ तक खुद मध्य रात्रि के समय और शिष्योँ के पास करवाते हैँ -
मैँने उन्हेँ उसी समय बाँसुरी बजाते सुना है!
- लावण्या

संजय पटेल said...

राधिकाजी,
बाँसुरी,पन्ना बाबू और मेरे दादाजी श्रीकृष्णशरणलीन शंकरलालजी पटेल. क्या अदभुत संयोग देखिये.मेरे दादाजी जीवनपर्यंत द्वारिकाधीश भक्त रहे,कई कृष्ण-बंदिशें रचीं.जैसे..मधुरी बजावत मुरली कन्हैया,जमुना के तट पै चरावत गैया...आदि.कुछ संयोग देखिये आज़ादी के पहले सैलाना रियासत(ज़िला रतलाम)में पू.दादाश्री मुलाज़िम थे. एक अंधेरी रात में पन्ना बाबू बाँसवाड़ा राजस्थान से रास्ता भूल गये और सैलाना आ पहुँचे. सैलाना के तत्कालीन अधिपति कलाप्रेमी थे.कलकत्ता,बनारस,लख़नऊ और बॉम्बे के कला जगत में काफ़ी आवाजाही थी. पन्नाबाबू ने जैसे ही अपना परिचय दिया...राजा अभिभूत होकर बोले पन्ना बाबू आपको राज-अतिथि रहेंगे.वे सप्ताह भर सैलाना रहे और लिखते हुए राधिकाजी मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं मेरे दादाश्री ने पन्ना बाबू के साथ तबला संगति की.दादाजी लाजवाब तबला वादक थे और बनारस का बड़ी पल्ली का तबला ही बजाते थे. मात्र एक कैसेट के मैं और ज़्यादा कुछ नहीं सहेज पाया उनका. हाँ कुछ कृष्ण की छाप वाले पद हैं (बाक़यादा कम्पोज़ किये हुए)बस वे ही मेरी धरोहर हैं.

आपकी इस पोस्ट पर ये भी बता दूं कि कृष्ण जन्माष्टमी के दिन ही पू.दादाजी का जन्म दिन होता है अगर वे २००८ के जन्म उत्सव पर भी जीवित होते तो १०६ बरस के होते.सन १९९८ में वे विष्णु सहस्त्रनाम उच्चारित करते हुए श्रीकृष्णशरणलीन हो गए.

Sumit Pratap Singh said...

SHRI KRISHNA JI KA CHITRA ATIUTTAM HAI...
SHUBH JANMASHTMI