Monday, August 11, 2008

सिनेमा संगीत कल और आज



सिनेमा संगीत का नाम सुनते ही ह्रदय के तार झंकृत हो जाते हैं, मन मस्तिष्क पर न जाने कितने नए पुराने गाने छा जाते हैं,सिनेमा संगीत में हर किसी की रूचि हैं,छोटे छोटे बच्चे गाते नज़र आते हैं तू ही रे तू ही रे तेरे बिना मैं कैसे जीउ,तो वृध्ध गाते हैं तू यहाँ मैं वहा जिन्दगी हैं कहा?नवयुवक युवतिया मन ही मन गुनगुनाते हैं ओ पालन हरे निर्गुण ओ न्यारे ......

तो यही कहानी हैं हमारे फ़िल्म संगीत अर्थात सिनेमा संगीत की,भारतीय चित्रपट सृष्टि की अपनी एक विशेषता हैं जो बतलाती हैं की भारत के जनमानस की रग रग में संगीत किस प्रकार बसा हैं,संगीत के बिना यहाँ सब कुछ अधुरा और अपूर्ण है,चाहे वह अच्छी से अच्छी मनोरंजक फिल्म ही क्यु न हो। यह प्रेम हैं भारतीय जनता का संगीत से,लगाव हैं सात सुरों से,और सुरों की बहती अनवरत गंगा से। संगीत एक सागर हैं और सारी सांगीतिक विधाये नदियाँ,जो पूज्य हैं ,पवित्र हैं,अविरत हैं।

सिनेमा संगीत एक ऐसी विधा हैं जो हर व्यक्ति को गान कला का आनंद उठाना सिखाती हैं,सुनना सिखाती हैं,समझना सिखाती हैं,यह जुड़ी हुई हैं मानव मात्र के अंत:करन से,जीवन से,अंतर्मन से।

आज से कुछ ५०-६० वर्ष पूर्व बोलती फिल्म शुरू हुई,सन १९४० के मध्य हर फ़िल्म में कम से कम दस गाने हुआ करते थे और लगभग सभी गाने शास्त्रीय रागों पर आधारित हुआ करते थे ,सन ४०-५० के दशक में सिनेमा संगीत ने हमें इसे प्ले बेक सिंगर्स दिए जिनके नाम चित्रपट संगीत जगत में स्वर्नाक्षरो में लिखे गए,उन नामो को भुलाना भारतीय सिने प्रेमियों और संगीत प्रेमियों के लिए असंभव हैं। ये कुछ नाम थे आदरणीय मोहम्मद रफी साहेब,गीता दत्त जी,आदरणीय नौशाद साहेब ,आदरणीय लता मंगेशकर जी,इस समय का गीत "सो जा राजकुमारी "आज भी माए अपनी प्यारी नन्ही बेटी को सुलाने के लिए गाती हैं,नौशाद साहब ने संगीत दिया हुआ गीत "जब दिल ही टूट गया" आज भी न जाने कितने दिल गाते हैं,६०-७०के दशक में आदरणीय कल्याण जी आनद जी,आदरणीय लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी,आरडी बर्मन साहेब के गीत हर उम्र के लोगो के दिलो पर छा गए और छा गयी इन गीतों की स्वर संयोजना,इन गीतों में बसे राग सब जैसो युगों युगों तक अमर रहने के लिए ही लिखेगए थे ,सन ८० व् ९० का दशक अमृत दशक रहा,"प्यार करने वाले करते हैं शान से","दर्देदिल दर्दे जिगर दिल में जगाया आपने","मैंने पूछा चाँद से की देखा हैं कही मेरे यार सा हँसी","तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल हैं" आज भी हरेक के मन में जस के तस् हैं आज भी इन गीतों पर लोगो का उतना ही प्यार हैं,आज भी इन सब गीतों को बहुत सुना जाता हैं,"राधिके तुए बांसुरी बजायी","देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए","चंदा हैं तू मेंरा सूरज हैं तू ओ मेरी आँखों का तारा है तू ","तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं","जाने कैसे सपनो में खो गई अंखिया " ,"इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हजारो हैं" आदि गीत शास्त्रीय संगीत,रागों पर आधारित होने के साथ ही सुंदर रचे गए,सुरों से सजाये गए थे,आज भी ये गीत उतने ही मधुर लगते हैं जितने की उस समय. ये सारे गीत जैसे खरा सोना है जिसकी चमक कभी भी कम नही होती।

आज प्लेबैक सिंगिंग का सुनहरा युग चल रहा हैं,मिडिया के योगदान से रोज़ नए और अच्छे सिंगर्स हमें मिल रहे हैं,शास्त्रीय,उपशास्त्रीय आदि विधाओ की और लोगो का रुझान पहले से बहुत कम हुआ हैं,हर कोई गाता हैं तो बस फिल्मी गीत,सुनता हैं तो सिनेमा संगीत,पालता हैं ह्रदय में तो बस इन्ही गीतों की प्रीत,पर विचारणीय तथ्य यह हैं की क्या आज के फिल्मी गीतों का स्तर वह रहा हैं जैसा की आज से कुछ वर्ष पूर्व था,हम इन चित्रपट गीतों के शब्दों की बात करे या उनके संगीत संयोजन की सब कुछ थोड़ा घटा हुआ सा प्रतीत होता हैं,अपवाद स्वरुप कुछ अच्छे गीत छोड़ दे तो अधिकांश गीतों की शब्द रचना न तो उतनी कर्णप्रिय हैं न सुंदर,इसी प्रकार इन गीतों से राग तो भूल ही जाए स्वर माधुर्य भी दूर दूर ही नज़र आता है,आज गीत बनते हैं,लोग सुनते हैं,उन पर नाचते हैं,फुल वोल्यूम में उन्हें लगा कर जिन्दगी की लय पर थिरकने की कोशिश करते हैं,भागती दौड़ती जिन्दगी के भागते दौड़ते गीतों के साथ रेस करते हैं,चार छ: महीने गाकर गुनगुनाकर सुनकर बोर हो जाते हैं उन्हें भूल जाते हैं, गायक भी नेम और फेम पाने का एक भी मौका नही छोड़ते और कभी नाक से गाकर तो कभी चीख पुकार कर गीतों की ऐसी की तेसी कर देते हैं।
संगीत की गहरी समझ सिनेमा संगीत के गीतों को समझने के लिए आवश्यक नही हैं , पर क्या अच्छा हैं क्या बुरा हैं,क्या मधुर हैं क्या कड़वा हैं इसकी समझ कम या अधिक रूप में हम सबको होती हैं,और यही समझ कहती हैं की नही कही न कही पुराना सिनेमा संगीत जयादा भला था,ज्यादा सुर माधुरी पूर्ण था,ज्यादा सरस था ,और यही समझ फ़िर कहती हैं की आज टेलेंट की कमी नही हैं,गायकों की कमी नही हैं,अच्छे लेखको की कमी नही हैं,अच्छे संगीतकारों की कमी नही हैं फ़िर क्यु ऐसे गीत बन रहे हैं जिन्हें सुन कर उन गीतों की याद आ जाती हैं जो भुलाये नही भूलते,क्यु उन गीतों की पंक्तिया जुबा पर ख़ुद ब ख़ुद आजाती हैं जो कितने ही बरस पुराने हैं पर आज भी उनका रंग चोखा हैं?
जरुरत हैं विचार करने की ,उस विचार के अनुसार वय्हवार करने की अच्छे गीतों की,संगीत की मांग करने की,तभी हमारा सिनेमा संगीत उन उचाईयो पुनः: पहुच पायेगा जहा वह कभी था,और जहा उसका आज भी इंतजार हैं,और हमें उस स्तर को पुनः लाना होगा उस पर टिकना होगा क्युकी शिखर पर पहुचना आसन हैं उस पर बने रहना कठिन।

6 comments:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सिनेमा सँगीत कर्णप्रिय हो उसे एक बहुत बडा वर्ग पसँद करता है - राधिका जी,
मेरे पिताजी स्व. पण्डित नरेन्द्र शर्मा के गीत भी आपने अवस्य सुने होँगेँ -
वे भी कालजयी हैँ !
जैसे,
" ज्योति कलश छलके " भाभी की चूडिया " फिल्म से
और
"सत्यम शिवम सुँदरम "
दोनोँ की गायिका लता दीदी हैँ और वे गीत मुझे बहोत पसँद हैँ :)
सस्नेह,
- लावण्या

Anonymous said...

ji LAvanya ji yah geet kisne nahi sune hain,yah geet apni kavita aur swar sayojan aur gayan ke liye ajar amr hain yah jankar atyant khushi hui ki ye aapke pitaji ke geet hain unhe mera naman.

Sajeev said...

राधिका जी बढ़िया पोस्ट है, फ़िल्म संगीत में आपकी रूचि देखकर अच्छा लगा, एक और अपने ही जैसे संगीत प्रेमी की बधाई लीजिये

नीरज गोस्वामी said...

बहुत जानकारी पूर्ण पोस्ट है आपकी...सच है की आज के फिल्मी संगीत में शब्द गौण हो गए हैं और संगीत के नाम पर सिर्फ़ शोर है...
नीरज

Anonymous said...

Radhika, sangeet ka safar sahi reha, inme ek geet aur shamil kar lijye, shankar hussein fil ka rafi ka gaya woh geet jisme music nahi ke barabar hai lekin sunne bhi sabhi ke uppar 10 hi bathta hai - "kahin ek masoom najuk si ladki"

Udan Tashtari said...

बहुत रोचक जानकरी.इस आलेख के लिए बहुत आभार.