Tuesday, August 26, 2008

ध्रुपद एक समृध्द गायन शैली


ध्रुपद समृद्ध भारत की समृद्ध गायन शैली हैं ,प्राय : देखा गया हैं की ख्याल गायकी सुनने वाले भी ध्रुपद सुनना खास पसंद नही करते। कुछ वरिष्ठ संगीतंघ्यो ने इस गौरवपूर्ण विधा को बचाने का बीड़ा उठाया हैं,इसलिए आज भी यह गायकी जीवंत हैं और कुछ समझदार ,सुलझे हुए विद्यार्थी इसे सीख रहे हैं , ध्रुपद का शब्दश: अर्थ होता हैं ध्रुव+पद अर्थात -जिसके नियम निश्चित हो,अटल हो ,जो नियमो में बंधा हुआ हो।
माना जाता हैं की प्राचीन प्रबंध गायकी से ध्रुपद की उत्पत्ति हुई ,ग्वालियर के महाराजा मानसिंह तोमर ने इस गायन विधा के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई,उन्होंने ध्रुपद का शिक्ष्ण देने हेतु विद्यालय भी खोला। ध्रुपद में आलापचारी का महत्त्व होता हैं,सुंदर और संथ आलाप ध्रुपद का प्राण हैं ,नोम-तोम की आलापचारी ध्रुपद गायन की विशेषता हैं प्राचीनकाल में तू ही अनंत हरी जैसे शब्दों का प्रयोग होता था ,बाद में इन्ही शब्दों का स्थान नोम-तोम ने ले लिया . शब्द अधिकांशत:ईश्वर आराधना से युक्त होते हैं,गमक का विशेष स्थान होता हैं इस गायकी में । वीर भक्ति श्रृंगार आदि रस भी होते हैं ,पूर्व में ध्रुपद की चार बानियाँ मानी जाती थी अर्थात ध्रुपद गायन की चार शैलियाँ । इन बानियों के नाम थे खनडारी ,नोहरी,गौरहारी और डागुर ।
आदरणीय डागर बंधू के नाम से सभी परिचित हैं ,आदरणीय श्री उमाकांत रमाकांत गुंदेचा जी ने ध्रुपद गायकी में एक नई मिसाल कायम की हैं,इन्होने ध्रुपद गायकी को परिपूर्ण किया हैं,इनका ध्रुपद गायन अत्यन्त ही मधुर, सुंदर और भावप्रद होता हैं, इन्होने सुर मीरा आदि के पदों का गायन भी ध्रुपद में सम्मिलित किया हैं । श्री उदय भवालकर जी का नाम युवा ध्रुपद गायकों में अग्रगण्य हैं,आदरणीय ऋत्विक सान्याल जी,श्री अभय नारायण मलिक जी व कई श्रेष्ठ संगीत्घ्य ध्रुपद को ऊँचाइयो तक पहुँचा रहे हैं ।

10 comments:

नीरज गोस्वामी said...

डागर बंधुओं को मैंने रूबरू सुना है और वो संस्मरण भुलाना असंभव है...द्रुपद की क्या बात है...
नीरज

महेन said...

यहां आकर कुछ सार्थक पढ़ने का अहसास होता है। संगीत में मेरी गहरी रुचि और निष्ठा है मगर ज्ञान नहीं जो यहां आकर आहार पाता है।
धन्यवाद।

Anonymous said...

डागर बंधुओं,पं.फाल्गुनी मित्रा और युवा गायिका मधु भट्ट तैलंग का ध्रुपद गायन सुनने का मौका मिला है . हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की अन्यतम विधा है ध्रुपद .

Tarun said...

राधिका,
संगीत का ज्ञानवर्धन कराने के लिये धन्यवाद, कोशिश करियेगा अगर कुछ ऐसे गीतों का उदाहरण भी दे सकें जिससे हमें भी समझ आ सके कि वास्तव में होता कैसा है सुनने में।

मसिजीवी said...

तरुण से सहमति है। अगर आप कुछ पाडकास्‍ट व वाडकास्‍ट का इस्‍तेमाल कर कुछ उदाहरण भी दे पाएं तो पूरे हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत के लिए बहुत लाभदायक होगा।

किसी भी तकनीकी सहायता के लिए यहॉं जिनसे भी कहेंगी उन्‍हें सहायता करके प्रसन्‍नता होगी

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

हाँ राधिका जी
मेरी भी सहमति है तरुण भाई से और मसिजीवी जी से
आप गीतोँ को भी देना आरँभ करीये तो आपका ब्लोग सँगीत का एक सार्थक दस्तावेज बन जायेगा -
शुभकामना सहित,
-लावण्या

Smart Indian said...

बहुत सार्थक प्रस्तुति है, धन्यवाद!

siddheshwar singh said...

बहुत बढिया ! संगीत पसंद तो करता हूं किंतु जानकारी कुछ है नहीं .यहां आकर सीखने को मिलता है. बहुत खूब!!!
अगर आप कुछ आडियो भी लगाएं तो कैसा रहे?

Anonymous said...

I would like to know if dhrupad is from the time of Krisna or before him when naradi sheekchhaa was the music. I am also interested fo find out shen and how the music of saamvaide stated to change and impurties of muslim wrold were adopted as new music was given names like khyaal gaayekie. Why people stared thinking bandish is of hindu music, what was there before that? One day I hope to find out the music that was there.

Regards,
Debu

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

भारतीय शास्त्रीय संगीत हर विधा की अपनी अलग पहचान है ... पर धुपद तो आधार स्तम्भ जैसा है ...|