संसार में ऐसा कोई प्राणी नही हैं जिसे संगीत से प्रेम न हो,जिसे सुरीले गीतों को सुनना पसंद न हो,सात स्वर, जिसे स्वर्गीय आनंद में न डुबो देते हो ,कह्ते हैं मुग़ल शासक औरंगजेब संगीत से घृणा करता था,संगीतकारों को दंड देता था,कहानी यहाँ तक हैं कि, उस समय के संगीतकारों ने एक बार एक अर्थी लेकर जुलुस निकाला,जब राजअधिकारियो ने उनसे पूछा कि यह अर्थी किसकी हैं और इसे लेकर पुरे शहर में जुलुस निकलने से क्या अभिप्राय हैं?तो उन संगीतकारों ने जवाब दिया,"यह अर्थी संगीत की हैं,और हम इसलिए जुलुस निकाल रहे हैं ताकि औरंगजेब को यह पता चल सके कि उसके राज्य में संगीत कि क्या दशा हुई हैं। पर सच यह हैं कि औरंगजेब को भी संगीत प्रिय था और वह संगीत सुना करता था ।
जिस संगीत कि माया ने किसी को मोहने से नही छोड़ा वह संगीत उपजा कहा से और कैसे यह कौन नही जानना चाहेगा?
कहते हैं कि सर्व सृजक ब्रह्म देव ने संगीत कला का भी सृजन किया। उनसे यह कला माता वीणापाणी को प्राप्त हुई ,माता शारदा ने यह कला नारद मुनि को दी ,कुछ मानते हैं कि, शिवजी ने यह कला नारद को दी । शिवजी ने माता पारवती की शयन मुद्रा को देखकर रुद्रवीणा की रचना की,उनके मुख से हिंडोल,मेघ,दीपक,व् श्री राग उत्पन्न हुए ,व् माता पारवती के मुख से कौशिक राग उत्प्प्न हुआ.
फारसी की एक कथा के अनुसार एक बार हजरत मूसा पहाडो पर घूम रहे थे,तो उन्हें एक पत्थर दिखाई दिया। उन्होंने उस पत्थर पर अपने असा से वार किया,तो उस पत्थर में सात छिद्र हो गए,सात छिद्रों से सात धाराऐ निकली,इन्ही जलाधाराओ की आवाज से हज़रत मूसा ने सात स्वरों कि रचना की।
कुछ विद्वानों का कहना हैं की संगीत की उत्पत्ति पशुपक्षियों की आवाजों से हुई,मोर से सा,चातक से रे ,बकरे से ग,कौवे से म,कोयल से प,मेंढक से ध,और हाथी से नी स्वर उत्पन्न हुए ।
पाश्चात्य विद्वान् फ्रायड के मतानुसार संगीत की उत्पप्ति सहज मनोविघ्यान के आधार पर हुई। अर्थात यह विद्या अन्य बातो की तरह,सहज रूप से मानवको आई।
कुछ के मतानुसार संगीत की उत्पत्ति ओमकार से हुई।
हम सभी ने चारो वेदों का नाम तो सुना ही हैं ,चारो वेदों में से सामवेद,गानवेद हैं , सामवेद में कई ऋचाऐ हैं। उनका सस्वर गान कैसे किया जाए? यह दिया हुआ हैं ,सामगान की कुछ ऋचाऐ तीन- चार स्वरों मेंहैं,परन्तु इसमे ही सात स्वरों के साथ ऋचाओ का गान भी दिया हुआ हैं, अत:साम से ही संगीत की उत्पत्ति हुई यह कहने मैं कोई हर्ज़ नही हैं ।
जिस संगीत कि माया ने किसी को मोहने से नही छोड़ा वह संगीत उपजा कहा से और कैसे यह कौन नही जानना चाहेगा?
कहते हैं कि सर्व सृजक ब्रह्म देव ने संगीत कला का भी सृजन किया। उनसे यह कला माता वीणापाणी को प्राप्त हुई ,माता शारदा ने यह कला नारद मुनि को दी ,कुछ मानते हैं कि, शिवजी ने यह कला नारद को दी । शिवजी ने माता पारवती की शयन मुद्रा को देखकर रुद्रवीणा की रचना की,उनके मुख से हिंडोल,मेघ,दीपक,व् श्री राग उत्पन्न हुए ,व् माता पारवती के मुख से कौशिक राग उत्प्प्न हुआ.
फारसी की एक कथा के अनुसार एक बार हजरत मूसा पहाडो पर घूम रहे थे,तो उन्हें एक पत्थर दिखाई दिया। उन्होंने उस पत्थर पर अपने असा से वार किया,तो उस पत्थर में सात छिद्र हो गए,सात छिद्रों से सात धाराऐ निकली,इन्ही जलाधाराओ की आवाज से हज़रत मूसा ने सात स्वरों कि रचना की।
कुछ विद्वानों का कहना हैं की संगीत की उत्पत्ति पशुपक्षियों की आवाजों से हुई,मोर से सा,चातक से रे ,बकरे से ग,कौवे से म,कोयल से प,मेंढक से ध,और हाथी से नी स्वर उत्पन्न हुए ।
पाश्चात्य विद्वान् फ्रायड के मतानुसार संगीत की उत्पप्ति सहज मनोविघ्यान के आधार पर हुई। अर्थात यह विद्या अन्य बातो की तरह,सहज रूप से मानवको आई।
कुछ के मतानुसार संगीत की उत्पत्ति ओमकार से हुई।
हम सभी ने चारो वेदों का नाम तो सुना ही हैं ,चारो वेदों में से सामवेद,गानवेद हैं , सामवेद में कई ऋचाऐ हैं। उनका सस्वर गान कैसे किया जाए? यह दिया हुआ हैं ,सामगान की कुछ ऋचाऐ तीन- चार स्वरों मेंहैं,परन्तु इसमे ही सात स्वरों के साथ ऋचाओ का गान भी दिया हुआ हैं, अत:साम से ही संगीत की उत्पत्ति हुई यह कहने मैं कोई हर्ज़ नही हैं ।
7 comments:
बहुत रोचक जानकरी दी है आपने ..और लिखा भी बहुत रोचक ढंग से है ,इस तरह की जानकारी और हो तो और भी दे ..अच्छा लगता है पढ़ना
ये आलेख लिखा बहुत बढिया आपने राधिकाजी !
खुशी यही है कि सँगीत आज इन्सानोँ को आनँद देने के लिये उपस्थित है .
- लावण्या
रोचक जानकारी!! ..आभार.
लीजिये हमें आज तक आपके इस ब्लॉग का पता ही नहीं था, भला हो मेरे ब्लॉग के पहले ज्नमदिन् का कि आप बधाई देने पहुंची और आपके इस मधुर ब्लॉग का हमें पता चला। अब हम इसे अपने सिस्टम में सहेज रहे हैं, और सारे लेख पढ़ रहे हैं।
संगीत की उत्पति के बारे में जानना बहुत अच्छा लगा।
ब्लॉग के जन्मदिन की बधाई देने के लिये और गीत पसंद करने के लिये धन्यवाद।
दिलचस्प बातें।
अच्छी जानकारी के लिए आभार.
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