Monday, August 25, 2008

सुर न सधे क्या गाऊ मैं ?


सुर ना सधे क्या गाऊ मैं?सुर के बिना जीवन सुना ............सुर ना सधे ?
कितना सुंदर गीत हैं न!और कितनी सुन्दरता से एक गायक की मनोवय्था का वर्णन हैं ।
सुर की महिमा अपार हैं ,सम्पूर्ण जीव सृष्टि मैं सुर विद्यमान हैं ,उसी एक सुर को साधने में संगीत्घ्यो की सारी आयु निकल जाती हैं ,पर सुर हैं की सधता ही नही हैं । कहते हैं ........
" तंत्री नाद कवित्त रस सरस नाद रति रंग ।
अनबुढे बूढे,तीरे जो बूढे सब अंग । "

अर्थात - तंत्री नाद यानि संगीत,कविता आदि कलाए ऐसी हैं की इनमे जो पुरी तरह से डूब गया वह तर गया और जो आधा-अधुरा डूबा ,वह डूब गया अर्थात उसे यह कलाए प्राप्त नही हो सकी ,वह असफल हो गया ।
सच हैं ,कला सीखना,कला से प्रेम करना एक बात हैं ,पर कला की साधना करना दूसरी बात!एक बार पक्का निर्णय हो गया की हमें यह कला सीखनी हैं तो उस कला के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किए बिना काम नही चलता,सब कुछ भूल कर दिन रात एक करके रियाज़ करना होता हैं ,साधना करनी पड़ती हैं ,तपस्या करनी पड़ती हैं । तब कही जाकर सुर कंठ में उतरता हैं ,हाथो से सृजन बनकर वाद्यों की सुरिल लहरियों में बहता हैं ।

कलाकार होना कोई सरल काम नही। आप चाहे लेखक हो,संगीतघ्य हो,चित्रकार हो ,उस विधा में आपको स्वयं को भुला देना होता हैं,और एक बार जब ये कलाए आपको अपना बना लेती हैं,जब आप इनके आनंद में खो जाते हैं ,तो दुनिया में कोई दुःख नही रहता ,कोई मुश्किल नही रहती ,आप योगियों,मनीषियों की तरह आत्मानंद प्राप्त करते हैं । जीवन सुंदर -सरल और मधुर हो जाता हैं। इन कलाओ के नशे में जो डूब गया उसके लिए नशा करने की जरुरत ही नही रह जाती,सुर सुधा से बढ़कर कोई सुधा नही ,कला सुधा ही सबसे सरस सुधा हैं।
इन कलाओ जब कृपा होती हैं ,तो सारे संसारी जनों का प्रेम मिलता हैं,तभी तो यह कलाए स्वयं ईश्वर को भी प्रिय रही हैं ।कंठ से जब सुर सरिता बहती हैं तो नही गाना पड़ता "सुर ना सधे क्या गाऊ मैं ?"बस उसके लिए जरुरी हैं साधना अर्थात रियाज़ !

गायक की फोटो //www.math.toronto.edu से साभार

8 comments:

शोभा said...

आप सही कह रही हैं। सुरों की साधना बहुत अभ्यास माँगती है। मैने पढ़ा था कि उस्ताद बिस्सिमल्ला खाँ ने ८० बरस तक सुर की साधना की। और तब भी भगवान के सामने हाथ फैला कर यही कहते थे- मेरे मालिक मुझे एक सुर दे दे। आपकी यही भावना बनी रहे,यही कामना है। सस्नेह

Tarun said...

Sahi keh rahi hain aap. kalakar hona waqai me saral nahi hai.

Manish Kumar said...

satya vachan..apni kala mein doobna ek aloukik anand deta hai.

Sumit Pratap Singh said...

uttam rachna...

ताऊ रामपुरिया said...

आप चाहे लेखक हो,संगीतघ्य हो,चित्रकार हो ,
उस विधा में आपको स्वयं को भुला देना होता हैं,
और एक बार जब ये कलाए आपको अपना बना लेती हैं,
जब आप इनके आनंद में खो जाते हैं ,
तो दुनिया में कोई दुःख नही रहता ,
कोई मुश्किल नही रहती ,
आप योगियों,
मनीषियों की तरह आत्मानंद प्राप्त करते हैं ।


मैं तो यहाँ पहली बार आया ! आपके लेखन को
पढ़ते पढ़ते मंत्रमुग्ध रह गया ! एक एक शब्द माला
के मनके की तरह पिरोया है ! आपके बारे में जानता
भी नही हूँ ! पर आपको प्रणाम करने की इच्छा
हो रही है ! प्रणाम !

अजित वडनेरकर said...

बढ़िया चल रहा है राधिका सुरों का सफर । चलती चलो, बढ़ती रहो।

कंदील, पतंग और तितलियां said...

राधिका, मेरी बेटी फिलहाल गंधर्व महाविद्यालय की छात्रा है लेकिन वो विचित्र वीणा सीखना चाहती है। मैं रहता दिल्ली में हूं लेकिन ग्वालियर में मेरा घर है जहां मैं आता-जाता ही रहता हूं। उसे आपकी तरह विचित्र वीणा में पारंगत करने के लिये मुझे क्या करना चाहिये।
अजय शर्मा, नई दिल्ली

Radhika Budhkar said...

अजय जी,सबसे पहले तो आपको व आपकी बेटी को शुक्रिया कहना चाहूंगी की आपने विचित्रवीणा को चुना,वह विचित्रवीणा सीख रही हैं यह बहुत खुशी की बात हैं.
किसी भी साज को पाने के लिए रियाज़ का बहुत महत्व होता हैं.मैं आपसे यह जानना चाहूंगी की आपकी बेटी ने पहले कही संगीत सिखा हैं ? यानि कुछ गाना वगेरे ,विचित्र वीणा में परदे नही होते यह तो आप भी जानते ही होंगे,इसलिए सुरों का पक्का होना बहुत जरुरी होता हैं,अगर उन्होंने पहले संगीत की शिक्षा नही ली हैं तो उन्हें विचित्र वीणा के साथ साथ गायन की भी थोडी शिक्षा दिलवाइए,सबसे महत्वपूर्ण होता हैं सुर,सुर सच्चा लग जाए तो ईश्वर मिल जाता हैं,अगर वह सुर की पक्की होंगी तो विचित्र वीणा बजाना भी कठिन नही हैं ,दूसरा............... संगीत श्रवण विद्या हैं ,जितना हो सके अच्छा शास्त्रीय संगीत उन्हें सुनवाइये ,दिन भर घर में बजता रहे ,वोकल ,इंस्ट्रुमेंटल कुछ भी,हम बैठकर ध्यान देकर न भी सुने तो भी वातावरण में घुमने वाले स्वर और संगीत की बाकि बारीकिया हमारा दिमाग संजोता रहता हैं,आज हमे इसका पता न चले तब भी धीरे धीरे सब याद आता हैं.सतत रियाज़ उचित मार्गदर्शन और अपनी कला से प्रेम करने से वह निश्चित ही एक सफल वीणा वादिका होजयेंगी .मेरी शुभकामनाये .